कोरबा/सीजी एनएन 24 न्यूज: जिले में अफसरों की लापरवाही और अव्यवस्थित प्लानिंग की वजह से कोरबा कभी भी टापू में तब्दील हो सकता है। कुदुरमाल स्थित लगभग साढ़े 600 मीटर लंबे पुराने पुल को जर्जर हालत के चलते बंद करना पड़ा है, जबकि बालको इलाके के बेलगिरी नाले पर बना पुल भी गंभीर रूप से क्षतिग्रस्त है। इसे भी जल्द बंद करने की तैयारी चल रही है। ऐसे में जिले की चार लाख से अधिक आबादी और औद्योगिक ट्रांसपोर्ट पूरी तरह प्रभावित हो रहा है।
ट्रैफिक 400 गुना बढ़ा, पर पुलों की क्षमता वही
कोरबा में कोयला खदानों और नए प्लांटों के विस्तार के चलते पिछले ढाई दशक में ट्रैफिक का दबाव 400 गुना बढ़ चुका है। कोयला परिवहन में ही 4,000 से अधिक भारी वाहन रोजाना सड़कों पर दौड़ रहे हैं, इसके बावजूद पुलों की क्षमता बढ़ाने या नए पुल बनाने पर विभाग ने ध्यान नहीं दिया।
40 साल पुराने कुदुरमाल पुल पर मरम्मत के अभाव में स्लैब बैठ गया, जिसके बाद इसे बंद करना पड़ा। इससे कोरबा, बिलासपुर, रायगढ़ और जशपुर जाने वालों को लगभग 50 किलोमीटर अधिक दूरी तय करनी पड़ रही है।
बालको का बेलगिरी पुल भी खतरे में
बालको क्षेत्र का बेलगिरी नाले पर बना पुल भी चौबीसों घंटे भारी वाहनों के दबाव में रहता है। समय रहते मरम्मत नहीं होने से यह बुरी तरह जर्जर हो चुका है और किसी भी वक्त बंद करना पड़ सकता है। शहर से बाहर जाने वाले कई अन्य पुल–पुलिया भी इसी स्थिति में हैं।
ट्रांसपोर्टरों और जनता को भारी नुकसान
अगर यह पुल भी बंद हुआ तो जिले की आबादी के साथ–साथ उद्योगों और ट्रांसपोर्ट कारोबार पर बड़ा असर पड़ेगा। पहले से ही परिवहन कंपनियां अतिरिक्त दूरी तय करने से भारी नुकसान झेल रही हैं।
कुछ वर्ष पहले तीन नए पुलों भिलाईखुर्द–सर्वमंगला, बालको–रिसदी रोड परसाभाटा–ध्यानचंद चौक के निर्माण के लिए करीब 66 करोड़ का प्रस्ताव भेजा गया था, लेकिन फंड स्वीकृत नहीं हुआ। विभाग अब भी फंड की कमी का हवाला दे रहा है।
DMF के 800 करोड़ का उपयोग क्यों नहीं?
जिले को हर साल लगभग 800 करोड़ रुपये DMF फंड मिलता है। विशेषज्ञों का मानना है कि यदि इस राशि का सही उपयोग किया जाए तो पुलों की बदहाली दूर की जा सकती है, लेकिन अधिकारियों की उदासीनता के कारण जनता को परेशानी झेलनी पड़ रही है।